Friday, 30 March 2018

Function Of Clutch


CLUTCH
Function Of Clutch:-


Clutch वह Device है जिसका प्रयोग Transmission System में Engine को Transmission Engage तथा Disengage करने में होता है। Engine तथा Transmission के बीच मे Clutch होता है। जब क्लच एंगेज होता है। तब इंजन से पावर पिछले पहियो तक Transmission System में होकर प्रवाहित होती है, और जब Clutch Dis Engage होता है। तब engine से पावर पिछले पहियो तक प्रवाहित नही होती। जिससे इंजन चलते हुए भी गाड़ी नही चलती। इंजन स्टार्ट करते समय, Gear बदलते समय, गाड़ी रोकते समय तथा Engine को Idling पर चलाते समय क्लच को Dis Engage किया जाता है। गाड़ी चलाते समय Clutch को Engage रखा जाता है। इसे सावधनी से Operate करने से गाड़ी की गति में झटके नही लगते तथा Transmission System के अन्य भागों पर अनावश्यक Strain नही पड़ता।

PRINCIPLE OF OPERATION:-

Clutch Friction के सिद्धांत पर कार्य करता है जब दो सतह दब कर एक दूसरे के सम्पर्क में आ जाते है तब ये घर्षण के कारण एक हो जाते है। अब यदि एक को घुमाया जाय तो दूसरा भी उसके साथ घूमेगा। दो सतहों में बीच का घर्षण सतह के क्षेत्रफल , दबाब तथा Friction गुणांक के ऊपर निर्भर करता है। अवस्यकतानुसार दो सतह अलग की जा सकती है और सम्पर्क में लायी जा सकती है।
एक सतह DRIVING MEMBER तथा दूसरी DRIVEN MEMBER होती है। Driving Member को घूमता हुआ रखते है। जब Driven Member को इससे मिलाते है तो वह भी घुमने लगता है। जब Driven Member को Driving Member से अलग करते है तो घूमना बन्द कर देता है।
Clutch की Friction Surface इस तरह Design की जाती है कि जब दबाब लगे जाता है तो Driven Member Driving Member पर Slip करता है, दबाब बढ़ाने पर Driven Member की स्पीड Slowly-slowly बढ़ती है। जब दोनो की स्पीड एक सी हो जाती है। तब कोई Slip नही होता। जिससे Clutch पूरी तरह एंगेज रहता है।

Clutch का Driving Member Flywheel होता है जो कि Crankshaft पर कसा रहता है। Driven Member Pressure Plate होती है जो कि Transmission Shaft पर कसी रहती है। Friction Surface, जिसे क्लच प्लेट कहते है।

REQUIRMNET OF A CLUTCH

  1. Torque Transmission:- Engine की अधिकतम Torque पारेषित करने के लिए Clutch समर्थ होना चाहिए।
  2. Gradual engagement:- झटके न लगें इस कारन क्लच धीरे-धीरे Engege होंना चाहिए।
  3. Heat Dissipation:- Clutch में Friction के कारण जो Heat Generate होता है, उसे बाहर निकालने में क्लच समर्थ होना चाहिए।
  4. Dynamic Balancing;- गति में Clutch संतुलित (Balanced) होना चाहिए।
  5. Vibration Damping:- Power Press के समय Clutch में जो Vibrate Generate होता है, उन्हें कम करने के Mecanism इसमे होना चाहिए।
  6. Size:- Clutch छोटे size का होना चाहिए
  7. Free pedal Play:- Clutch में फ्री पेडल होना चाहिए,ताकि पेडल पर पैर रखते ही, Clutch Disengage न हो।
  8. Easy In Operation:- Clutch Easly Engage तथा Disengage होना चाहिए
  9. Lightness:- Clutch का Driving Member हल्का होना चाहिए, ताकि क्लच DisEngage होने के बाद यह अधिक समय तक न घुमता रहे।
Qualities Of a Good Clutch:-

a). Clutch  को एंगेज करते समय यह Load ढंग से ले, स्लिप न करे, झटका न दे और आवाज पैदा न करे।

b). इसमे लगी Driven Disk की moment of Inertia कम हो ताकि Gear आसानी से Shift किये जा सके।

c). किसी हद तक Crankshaft की Vibration को भी कम कर सके।

d). Clutch Disengage करने के लिए पेडल पर कम दबाब की आवश्यकता हो।

e). Adjustment आसानी से की जा सके।
f). Overhal करने में भी आसानी हो।
g). इसका Design साधारण हो और घिसने वाले पुर्जे कम कीमती हो।
h). Friction Material अर्थात Clutch Lining की effeciency ज्यादा होनी चाहिए।
i). सारी क्लच असेंबली का वजन कम से कम होना चाहिए।

j). Clutch के पुर्जो की, खासतौर पर Clutch प्लेट की काफी लाइफ हो।

k). Clutch Assembly पूरी तरह से बैलेन्स हो जिससे या high speed पर Vibration पैदा न करे।

MAIN PARTS OF CLUTCH PLATE

1. Driving Member
2. Driven Member
3. Operating Member


CLUTCH PLATE :-
clutch का ड्रिवेन मेंबर clutch प्लेट होती है।जो कि flywheel तथा Pressure plate के बीच मे होती है। यह Clutch shaft की Spline पर चढ़ी रहती है। जन इसे फबते है,तब यह Clutch shaft को घुमाती हैं तथा पावर को पारेषित करती है।

एक Pressure plate पर घर्षण पदार्थ के दो सेट होते है। जो कि Cushion Spring पर चढ़े रहते है। घर्षण पदार्थ के सेट को Facing कहते है। फेसिंग तथा Cushion Spring का एक spring रिटेनर plate तथा Spring base डिस्क से रिवीटों द्वारा जुड़े होते है। इनके बीच मे बने हुए खाँचो में Torsion Spring लगी रहती है। इन स्प्रिंगो का संपर्क हब  फ्लेनजो से होता है, जो कि स्प्रिंग रिटेनर plate तथा डिस्क के बीच मे फिट रहते है तथा फेसिंग पर लगे हुए Twisting force को Splined hub पर पहुँचाते है।

CLUTCH PLATE:-

TYPES OF CLUTCH:-

1). Friction Clutch

  a). Single Plate Clutch
  b). Multiplate Clutch:- ◆ Vet Clutch ◆ Dry
  c).  Cone Clutch:- ◆ External   ◆ Internal

2).  Centtifugal Clutch
3).  Semi Centrifugal Clutch
4).  Conical Spring Clutch / Diafram Clutch
     A- Teperd Finger Type, B- Crown Spring
5).  Positive Clutch-Dog/ Spline Clutch
6).  Hydraulic Clutch
7).  Electromagnetic Clutch
8).  Vaccum Clutch
9).  Over Running Clutch

SINGLE PLATE CLUTCH:-

 ज्यादातर मोटर गाड़ियों में Single Plate Clutch का प्रयोग होता है। मूल रूप से इसमे केवल एक Clutch Plate होती है ,जो कि Clutch Shaft की Splines पर चढ़ी रहती है।

Engine की Crankshaft पर फलीव्हील कसा रहता रहता है जो इसके साथ घुमता है। spring तथा बोल्ट द्वारा फलीव्हील से प्रेशर प्लेट कसी रहती है जो कि क्लच प्लेट को चलाते समय Clutch Shaft पर सरकती है। जब Clutch Engage करते है तो फलीव्हील तथा Pressure प्लेट के बीच मे Clutch plate दबती है। Clutch plate की दोनों सतहों पर Friction Lining होती है। Flywheel , Clutch Plate तथा Pressure Plate के बीच मे फ्रिक्शन होने के कारण , Flywheel के साथ Clutch plate घूमती है जिससे Clutch shaft भी घूमती है। Clutch Shaft का Relation Transmission से होता है।
जिससे Engine की Power Crankshaft से Flow होकर क्लच शाफ़्ट से Transmission को मिलती है।

MULTIPLATE CLUTCH:-



CONE CLUTCH:-

CENTRIFUGAL CLUTCH:-


DIAPHRAGM CLUTCH:-



SPLINE CLUTCH / DOG CLUTCH:-


          

Thursday, 29 March 2018

Fully Details About Fuel Injection System

FUEL INJECTION SYSTEM
Diesel Engine को चलाने के लिए,Diesel टैंक से Engine तक भेजना पड़ता है। Tank में Diesel भरा रहता है। यह Filter,Injection pump, Injector होते हुए Cylinder तक पहुंचता है। Diesel Engine में फ्यूल फीड सिस्टम के बहुत सारे भाग होते है जो इस प्रकार है।:-

  • Fuel Tank
  • Fuel Filter
  • Injection Pump
  • Injector
  • Fuel Lines
  • Fuel Guage
Four Cylinder डीजल इंजन के लिए फ्यूल फिड सिस्टम में Distribution Type Injection Pump लगा हुआ हित है, और Fuel tank Gravity type का इसके ऊपर स्तिथ होता है। जैसे कि Fuel-कॉक खोलते है, तो फ्यूल, ग्रेविटी के कारण pipe में होकर Hand Primer में और Filter में होता हुआ इंजेक्शन पंप में पहुंचता है। Injection Pump से निकल कर फ्यूल हाई प्रेशर के साथ चारो लाइनों से चारो इंजेक्टर में जाता है। जहां से चारो सिलिंडर में inject होता है।

 अब बात करते है, की आखिर Fuel Injection की क्या आवस्यकता है।

  1. इंजेक्श का सुरुवात और अंत तेजी से होना चाहिए,धीरे धीरे नही।
  2. Load के अनुसार Injection, सही समय पर, सही Rate से और  सही मात्रा में होना चाहिए।
  3. Atomised दशा में फ्यूल का इंजेक्शन होना चाहिए, और उसे Combustion Chamber में समान रूप से फैल जाना चाहिए।
अब बात करते है इसकी Method की:-
 Compression Ignition इंजिनों में फ्यूल इंजेक्शन के दो विधि होते है।

  1. Air Blast Injection
  2. Airless or Sollid Injection
ऐरलेस भी दो तरह के होते है।
a. Individual Pump System
b. Common Rail System

1). Air Blast Injection:-
इस विधि का उपयोग सबसे पहले स्थिर इंजिनों में तथा जलयान के इंजिनों में होता था। अब इसका उपयोग नही होता है। इस विधि में पहले हवा को उच्च दबाब पर Compression करते है और फिर इसके साथ फ्यूल को सिलिंडर में inject करते है। Fuel इंजेक्शन की दर हवा के दबाब से control की जाती हैं
उच्च दबाब के कारण हवा का उच्च तापमान हो जाता है। यह compressor इंजन से ही चलाया जाता है। जो इसकी 10 % power Obserb करता है।जिसके कारन इंजन की Net-Output कम हो जाती है। यह बहुत ही महंगा होता है,और साथ में जटिल भी होती है।

2). Airless Injection:-
इस system में High pressure पर फ्यूल को सीधे Combustion Chamber में inject किया जाता है।यह Compressor की Temperature के कारण जलता है, इस विधि में Fuel Pump की जरूरत पड़ती है।जो फ्यूल को High Pressure पर 300 kg/ cm2 देता है, इसके दो भाग है पहला :-

a). Individual Pump System:-
ईस system में, प्रत्येक Cylinder के लिये अलग अलग High Pressure Pump तथा Meatring Unit लगा होता है। Fuel Injection का यह एक जटिल और महंगा system है।

b). Common Rail System:-
इस System में , एक Multi cylinder pump द्वारा एक common Rail में फ्यूल को pump किया जाता है। Relief valve द्वारा इस Rail में दबाब नियंत्रित किया जाता है। इस common rail से प्रत्येक Cylinder में फ्यूल की निश्चित मात्रा पहुंचती है।
Air Blast Injection की तुलना में Airless Injection अधिक सरल , हल्का और सस्ता है। इसमें fuel अच्छी तरह Atomise होता है। High output वाले engine के लिए यह सिस्टम अधिक उपयोगी है।

★ Fuel Filter:-
    नाम से ही स्पष्ट हो रहा है, की इसका काम Filtering यानी कि छानने वाला काम होगा, डीजल की गरियों में Filter Fuel, injection pump के पहले लगा होता है।इसका main काम Fuel को छानना है, जिससे कि धूल मिट्टी के कण निकल जाये और फ्यूल साफ होकर Cylinder के अंदर जाए।


★ Fuel Pump:- इसका main काम गाड़ी के Load तथा speed के अनुसार Fuel की सही मात्रा नापना और सही समय पर cylinder में supply करना। इसका प्लंजर एक Cam और Rapit प्रणाली से चलता है। यह plunger एक Baril में ऊपर-नीचे चलता है, इंजन में Cylindero की संख्या अनुसार ही प्लंजरो कि संख्या होती है। Plunger के ऊपर Dia पर एक आयताकार सीधा Groove खाँचा होता है। जो नीचे एक Halical Groove से मिला होता है। डिलीवरी Valve प्रेसर के कारण एक स्प्रिंग के विरुद्ध अपनी सीट के ऊपर उठता है, डिलीवरी वाल्व से Fuel Injector को जाता है। और इंजेक्टर से सिलिंडर के अंदर Inject होता है।

FUNCTION OF FUEL PUMP:-

1. डीजल आयल को ठीक मात्रा में भेजना।
2. प्रत्येक सिलिंडर को बराबर मात्रा में डीजल भेजना।
3. प्रत्येक Cylinder को ठीक समय पर डीजल स्प्रे Start करना।
4. Injection System के अंदर अधिक pressure बनाना जिससे डीजल presson से Atomised होकर निकले।
5. डीजल ऐसे स्प्रे हो कि Combustiom Control में हो।
6. गाड़ी की लोड और स्पीड के हिसाब से Injection Timing बदलना।


INJECTION NOZZLES:- Injector के निचले सिरे पर एक कैप नट के द्वारा Nozzle Tight रहता है,इसकी बॉडी में फ्यूल जाने के लिए Passages बने होते है, बिच में एक valve शीट होती है, जिसपर एक valve बैठा रहता है। Valve के उठने से Nozzle के एक सिरे पर बने छोटे-छोटे छिद्र खुलते है। जिससे होकर Fuel इंजेक्ट करता है।

यह बहुत प्रकार के होते है।

a). Single Hole

b). Conical Ended Single Hole

c). Multiple Hole

d). Long stem

e). Pintle Type

f). Delay Type

Note:- Nozzle कभी कभी जाम हो जाता है, तो इसके होल की सफाई की जाती है, तो चलिए जानते है कि आखिर इसकी सफाई कैसे करे:-

Injection Pump विशेषज्ञ को इसकी रिपेयर और जांच करनी चाहिए। इसके लिए Nozzle को खोल कर उसे अच्छी तरह से साफ करें और उस पर लगी कार्बन को , वायर ब्रश द्वारा साफ करे। इसके बाद एक steel की तार जिसका Diameter Nozzle होल से थोड़ा कम हो,पिन वाईस में पकरकर उसके सिरे को महीन ग्राइंडिंग stone पर रगड़े।
फिर Nozzle होल को oil स्प्रे होल्स साफ करें। इसके अंदर बनी सीट को साफ करने के लिए Laping Tool का प्रयोग करे। इसके बाद Nozzle कोAssemble करे और इसकी एक एक कर के टेस्ट करे।

Pressure Test
Leak Test
Spray Test

Monday, 26 March 2018

ENGINE OPERATION


                                         Engine Operation

 सबसे पहले जानेंगे कि Engine होता क्या है? इसकी पूरी फंक्शन क्या है। तो चलिए सुरु करते है।

Engine:- Engine वह यंत्र है,जो heat एनर्जी को Mechanical Energy में परिवर्तित करता है। engine को हिंदी में गंत्र भी कहते है।
It means which can move.

There are two types of engine:-

1). Internal Combustion Engine (I.C.)
2). External Combustion Engine (E.C)

Internal Combustion Engine  में फ्यूल का दहन (Combustion)  Cylinder  के अंदर होता है। इसमें फ्यूल की कैमिकल (Chemical) एनर्जी पहले हीट एनर्जी में बदलती है और फिर यह हीट एनर्जी मैकेनिकल एनर्जी में बदलती है , जिससे क्रैन्कशाफ्ट घूमती है।

Example:- Petrol Engine, Diesel Engine,car,truck,jeep,tractor,scooter,motorcycle.

External Combustion Engine:-वह engine है,जिसमे फ्यूल का combustion cylinder के बाहर होता है,इसमे  फ्यूल के Combustion से Heat एनर्जी steam में आंती है,जो कि cylinder के अंदर piston पर कार्य करती है। फिर उससे crankshaft घुमती है।

Example:- Train

Difference Between I.C engine and E.C Engine .


I.C engine.    

1).  इसमे fuel के Combustiom cylinder के अंदर होता है।

2). गैस का working pressure तथा  Temprature बहुत अधिक होता है।

3). Engine Single होता है।

4). Engine के effeciency अधिक होती है।

5). इसका fuel tank छोटा होता है।

6). Engine आसानी से चालू तथा बन्द हो जाता है।

7). Engine हल्के और सस्ते होते है।

8). Engine की पावर काम होती है, यह केवल एक गाड़ी को खींचता है।

E.C Engine

1). Fuel का combustion Cylinder के बाहर होता है।

2). भाप का working pressure तथा Temprature कम होता है।

3). Engine single एक्टिंग तथा Double एक्टिंग दोनो ही प्रकार के होते है।

4). Engine की Effeciency कम होती है।

5). Iska Boiler बहुत बड़ा होता है। कोयला इकट्ठा रखने के लिए अधिक स्थान की जरूरत पड़ती है।

6). Condensor की आवश्यक्ता पड़ती है। Exhaust steam dubara काम आती है।

7). Engine चालू करने में बहुत देर लगती है।

8). Engine महँगे और भारी होते है।


  •  Four Stroke Petrol Engine:-


WORKING :- four-stroke engine में पिस्टन के 4 स्ट्रोक में  Engine Operation का एक cycle पुरा  होता है। और इतने समय में , Crankshaft दो चक्कर Revolution पूरा करता है। यह engine ऑटो cycle पर कार्य करता है। यह पेट्रोल से चलता है, और पेट्रोल का  Spark Ignition होता है। इसीलिए इसको फोर-स्ट्रोक ,स्पार्क इग्निशन,पेट्रोल इंजन कहते है।
इसके चार स्ट्रोक निम्न प्रकार के होते है।

1). SUCTION STROKE:- Suction Stroke में  Piston Top Dead Center (T.D.C) से Bottom Dead Center (B.D.C) तक  जाता है। इस स्ट्रोक में  Inlet Valve खुला रहता है, और  Exhaust Valve बन्द रहता है। पिस्टन की गति से cylinder में  Vacuum बढ़ता है।जिससे वह  Carburator से Air-Petrol का Mixture SUC करता है, और Cylinder Air-Petrol के  mixture से  भर जाता है। इस Stroke के अंत मे Inlet Valve बंद हो जाता है।

2). COMPRESSION STROKE:– इस Stroke में Piston B.D.C से ऊपर के तरफ T.D.C तक जाता है। इस stroke में  Inlet Valve तथा Exhaust Valve दोनो ही बंद रहते है। Cylinder के अंदर  Air-Petrol का जो मिक्सचर  आया था, वह combustion chamber में Compress हो जाता है।Compression से Mixture का pressure तथा Tempreture बढ़  जाता है,जिससे उसके जलने में सुविधा होती है।

3). POWER STROKE:- Piston के  T.D.C पर पहुंचने पर spark plug से sparking होता है, जिससे  Air-Petrol का mixture Constant Volume पर जलता है। जलने से उसका temprature बढ़ता है। यह   pressure piston को B.D.C. की तरफ धकेलता है। इस Stroke में दोनों Valve बन्द रहते है। इसी stroke में piston को कार्य करने की Power मिलती है, और जले हुये गैसों का Expension होता है। इसीलिए इसे, Power Stroke कहते है।

4). Exhaust Stroke:- Power stroke के बाद जब Piston B.D.C पर होता है, तो  exhaust Valve खुल जाता है। और इनलेट वाल्व बन्द ही रहत है। High Pressure होने के कारण जली हुई गैसें Exhaust Valve से होकर Cylinder के बाहर निकल जाती है।  अंदर बची हुई गैसों को Piston धकेलते हुए Exhaust Valve में होकर बाहर निकाल देता है, जब Piston T.D.C. पर आ जाता है, तो Exhaust Valve बन्द हो जाता है, और Inlet Valve Again खुल जाता है, और ईसि तरह चार स्ट्रोक पूरा होता है।

             Working Diagram






Wednesday, 21 March 2018

TYPES OF ENGINE (इंजन टाइप्स)


                         ENGINE TYPES

हेलो दोस्तो आज हम बात करेंगे Engine के विभिन्न टाइप्स के बारे में। तो चलिए सुरु करते है।

* IC (Internal Combustion) इंजिनों के टाइप्स कुछ इस प्रकार है।

1). फ्यूल के आधार पर (Types Of Fuel Used):-
⇒Petrol Engine
⇒Diesel Engine
⇒Gas Engine

2). साईकल के आधार पर ( Cycle of Operation):-
⇒Auto Cycle Engine
⇒Diesel Cycle Engine
⇒Dual Cycle Engine

3). स्ट्रोक/साईकल की संख्या के आधार पर (No. of Cycle/stroke):-

⇒ Four- Stroke Cycle Engine
⇒ Two- Stroke Cycle Engine

4). इग्निशन के आधार पर (Types of Ignition):-

⇒ Spark Ignition Engine
⇒ Compression Ignition Engine


5). सिलिंडरों के संख्या के आधार पर (Number Of Cylinder):-

⇒Single-Cylinder Engine
⇒ Two-Cylinder Engine
⇒ Three-Cylinder Engine
⇒ Four-Cylinder Engine
⇒ Six-Cylinder Engine
⇒ Eight-Cylinder Engine
⇒ Twelve-Cylinder Engine
⇒ Sixteen-Cylinder Engine

6). सिलिंडरों के व्यवस्था के आधार पर ( Arrangment of Cylinders):-

⇒ Vertical Enhine
⇒ Horizontal Engine
⇒ Radial Engine
⇒ V- Engine
⇒ Opposed Cylinder Engine

7). वाल्व की व्यवस्था के आधार पर (Valve Arrangment):-

⇒ L- Head Engine
⇒ I-  Head Engine
⇒ F-  Head Engine
⇒ T-  Head Engine

8). कूलिंग के आधार पर (Types Of Cooling):-

⇒ Air Cooled Engine
⇒ Water Cooled engine

और भी कई types के होते है। जैसे कि:-

9). स्पीड के आधार पर (Speed):-

⇒ Low Speed Engine
⇒ High Speed Engine
⇒ Medium Speed Engine

10). फ्यूल इंजेक्शन के आधार पर (Method Of Fuel Injection):-

⇒ Carburator Engine
⇒ Air Injection System
⇒ Airless or Solid Injection System

11). गवर्निंग के आधार पर (Method Of Governing):-

⇒ Heat and Miss Governed Engine
⇒ Qualitetivali Governed Engine
⇒ Quantetivali Governed Engine


12). उपयोग के आधार पर (Application):-

⇒ Stationary Engine
⇒ Automotive Engine
⇒ Locomotive Engine
⇒ Marine Engine
⇒ Aircraft Engine

Engine Construction


   ENGINE CONSTRUCTION

हेलो दोस्तो आज मैं फिर एक बहुत ही रोचक टॉपिक के बारे
में बात करने जा रहा हूँ।
Engine Construction:-  जैसे कि आप सभी जानते है, Engine में बहुत से COMPONENT लगी होती है। आज हम उसी सारे COMPONENT के बारे मेे बात करेंगे।

1) CYLINDER BLOCK:–  CYLINDER BLOCK, CYLINDER HEAD तथा CRANKCASE  ये 3 पार्ट्स ऑटमोबाइल ENGINE
की स्थिर बॉडी की रचना करते है, जो कि इंजन नींव होती है।
अगर बात छोटे इंजन की करे तो छोटे Engine में Cylinder Block त्तथा Crankcase एक ही कास्टिंग के होते है। बड़े engino में crankcase aluminium का बना होता है और अलग से जुड़ा हुआ होता है।

There are Three parts of Cylinder Block:-

1) Cylinder:- जिसमे पिस्टन चलता है।

2) Ports :- इसको openings भी बोलते है, ये Valve के लिए होता है।

3) Passages:- Cooling water बहने के लिए। लेकिन सिंगल सिलिंडर के चारो तरफ FINS लगे होते है।

अगर इसकी Composition की बात करे तो ये Grey Cast Iron का बनाया जाता है। चुकी इसका घिसाव (wearing) कम होता है, और वजन में भारी होता है। इसमें कुछ और अवयव मिलाये जाते है, जो इसका घिसाव प्रतिरोध (Wearing resistance) तथा तापमान प्रतिरोध बढ़ते है। बड़े cylindro के अंदर लाइनर (Liner) अलग से फिट किये जाते है।
इसकी COMPOSITION कुछ इस प्रकार होता है।

* Iron                95%
* Carbon           2.2%
* Silicon            1.2%
* Magniz           0.63%
* Sulfor             0.12%
* Phosphoros   0.85%

अलुमिनियम एलाय के भी सिलिंडर बनाये जाते है। इसका composition इस प्रकार होता है।

* एल्युमीनियम     91%
* टीन                  2%
* कॉपर               7%

इसके साथ
Waterpump
Fuel Pump
Distributor
Fly wheel
Inlet or Exhaust Manifold
Air Filter
Carburator लगा हुआ होता है।

इसके निचले भाग पर
Oil Pan or Sump तथा ऊपर वाले भाग पर Cylinder head लगा होता है।

अब बात करते है सिलिंडर हेड (Cylinder Head) की:-


Cylinder के ऊपरी भाग पर Cylinder Head लगा रहता है। Cylinder Head  में Combustion Chamber बना होता है, इसमे Spark Plug या Fuel Injector तथा Valve लगे होते है,
जो Air Colled Engine होती है उसमें  cylinder head पर Fins बने होते है, और Water Colled Engine के Cylinder head में कूलिंग वाटर supply होने के लिए Passage बना होता है।

इसकी हेड (Head) Grey Cast Iron or Aluminium Alloy का बना होता है
 Leakage को रोकने के लिए Cylinder तथा  head के बीच मे एक गैस्केट (Gasket) लगाया जाता है।
नोट:- Cylinder Head अलग न होकर cylinder block के साथ भी ढलवाँ (Composed)  हो सकता है।

Head में use किया जाने वाला मटेरिल Aluminium alloy होता है, तो चलिए इसकी Advantage और Disadvantage की बात करते है:

ADVANTAGE:-

√ Cast iron की तुलना में इसकी Heat Coductivity तकरीबन 3 गुनी अधिक होती है।

√ भार में ये हल्के होता है।
√ चलते समय Engine Cooling अच्छा होता है।
√ Engine जल्दी गर्म हो जाता है,जिससे छोटे Radiator     की आवश्यक्ता होती है।
√ High Compression Ratio तथा अधिक Cooling     Effect के कारण Power output अधिक होता है,         और Fuel की बचत होती है।

DISADVANTAGES:-

∆ Aluminium Alloy महंगा होता है,जिसके कारण engine की कीमत अधिक होती है।

∆ मुलायम धातु होने के कारण कसते (Tight) करते समय        इसकी आकृति (Construction) में कुछ Fault होने        Chances बढ़ जाती है।
∆ Thermal Expansion अधिक होने के कारण पिस्टन       तथा cylinder के बीच Clearance रखना पड़ता है।
∆ जंग (Rust) लगने की अधिक संभावना रहती है।
∆ Spark Plug तथा Valve की जगह Cast iron की        lining  लगनी पड़ती है।

GASKET:-

लीकेज (Leakage) को रोकने के लिए दो Mating surface के बीच गैस्केट लगाए जाते है।
ये Different Types के होते है। जैसे कि

Copper-Asbestos Gasket
Steel-Asbestos gasket
Steel-Asbestos-Copper gasket
Single Steel ridget or Corrugated Gasket
Stainless steel Gasket


CRANKCASE:-

Cylinder block का निचला भाग Oil pan सहित Crankcase होता है, यह Crankshaft तथा Camshaft के लिए housing का काम करता है,
ये Grey Cast Iron या Aluminium Alloy का बना होता है,इसकी एक प्रमुख काम ये होता है कि क्रैन्कशाफ्ट (Crankshaft) पर आए झटको को सहन करता है।

OIL PAN or SUMP:-

Crank case का निचला भाग Oil Pan या Sump कहलाता है,यह pressed steel या Alluminium Alloy का बना होता है तथा bolts द्वारा Crank Case से कसा रहता है, इसमे Lubricating Oil भरा होता है। इस Oil को Oil Sump खींचता है और Engine के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है। और Lubrication  के बाद यह oil
फिर Oil pan में वापस आ जाता है।

दोस्तो Liner के बारे में एक अलग से पोस्ट लिखा है, आप चाहे तो उसे पढ़ सकते है




Monday, 19 March 2018

Cylinder liner

 दोस्तो आपने Liner के नाम तो सुना ही होगा। आज हम बात करेंगे Liner के बारे में।


Liner:- cylinder के अंदर खोखली नली (Hollow barrel) फिट की जाती है,जिसे cylinder liner कहते है। पिस्टन के चलने से जब लाइनर के अंदर की सतह घिस जाती है तो लाइनर को बदल दिया जाता है। इससे cylinder बेकार नही होता। अब बात करते है इसकी बनाने की प्रक्रिया को लेकर।
Liner जो होता है,ये special एलॉय आयरन के बने होते है जिसमे
Silicon , मैगनीज़, निकिल , तथा क्रोमियम की भी कुछ मात्रा मिली होती है। ये सेन्ट्रीफ्यूगल कास्टिंग द्वारा बनाये जाते है और उनपर ऑइल हार्डनिंग की जाती है ताकि वे सुदृढ़ और घिसाव प्रतिरोधी रहे।

 There are two types of Liner:-

1) Dry liner
2) Wet liner

चलिए जानते है सबसे पहले Dry liner के बारे में।
दोस्तो ड्राई का मतलब ही होता है सूखा। Dry लाइनर की बाहरी सतह cylinder block के अंदर की सतह से फिट रहती है। यह लाइनर कूलिंग वाटर के सीधे संपर्क में नही आता।इसीलिए इसे ड्राई लाइनर कहते है।
इसकी मोटाई की बात करे तो यह 1.5 mm से 3 mm तक होती है।

Wet liner:-  wet liner की बाहरी सतह कूलिंग वाटर के सीधे संपर्क में रहती है, इसीलिए इसको wet liner कहते है। इसके दोनो सिरे पर flange होते है। इसकी मोटाई 1.5 mm से 6 mm तक होती है। Cooling water के सीधे संपर्क में होने के कारण इसकी बाहरी सतह पर जंग लग जाती है।

How to save fuel in your Automobile vehicle

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